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किसानों को करे मालामाल, इसे कहते हैं सोना लाल, करे केसर की खेती

किसानों को करे मालामाल, इसे कहते हैं सोना लाल, करे केसर की खेती

किसान भाइयों आपने मनोज कुमार की फिल्म उपकार का वो गाना तो सुना ही होगा जिसमें बताया गया है कि मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती। ये हमारे देश की धरती वास्तव में सोना उगलती है। ये सोना कोई और नहीं बल्कि केसर है, जिसको दुनिया में लाल सोना कहा जाता है। इसका कारण यह है कि मात्र छह महीने के समय में खेतों में उगने वाला ये केसर बाजार में सोने जैसा ही महंगा बिकता है। केसर का मूल्य 3 लाख से 4 लाख रुपये प्रतिकिलो तक है। डिमांड बढ़ने पर इसकी कीमत 5 लाख रुपये तक जाती है। केसर के महंगे होने का प्रमुख कारण यह है कि इसकी खेती समुद्र तल से 1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीले इलाकों में होती है। इस तरह के स्थान दुनिया भर में बहुत कम हैं।  बर्फीले लेकिन शुष्क मौसम में इसकी खेती की जाती है। यदि अधिक नमी वाली या पानी वाली जगह है तो वहां पर यह खेती नहीं हो सकती। विश्व में इस तरह के मौसम वाले खेती की जमीन कम होने के कारण इसके दाम अधिक होते हैं। स्पेन और ईरान मिलकर दुनिया की 80 प्रतिशत केसर पैदा करते हैं। भारत में कश्मीर में इसकी खेती होती है और वो दुनिया का 3 प्रतिशत केसर पैदा करता है। केसर सबसे महंगा मसाला है। इसके अलावा अनेक औषधीय गुणों के कारण पूरे विश्व में बहुत अधिक डिमांड है। सुगंध के कारण इसका प्रयोग कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी होता है। कुल मिलाकर केसर का जितना उत्पादन होता है उससे कई गुना अधिक मांग है। इस वजह से इसकी कीमत बहुत ज्यादा रहती है। आईये जानते हैं कि केसर की खेती किस प्रकार की जाती है।

भूमि और जलवायु

केसर की खेती के लिए भूमि और जलवायु केसर की खेती के लिए बलुई दोमट और दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी गयी है। रेतीली जमीन में भी इसकी खेती अच्छे तरह से की जा सकती है। इसके लिए जलभराव वाली जमीन ही हानिकारक है।
केसर की खेती के लिए पीएम मान 5-6 वाली मृदा सबसे अच्छी मानी जाती है। जलभराव से इसके बीज सड़ जाते हैं। इसलिये समतल या जल निकासी वाली जमीन में खेती की जानी चाहिये। केसर की खेती के लिए सर्दी, गर्मी और धूप की आवश्यकता होता है। इसकी खेती बर्फीले प्रदेश में अधिक अच्छी होती है। सर्दी अधिक पड़ने और गीला मौसम होने से इसकी पैदावार कम होती है। केसर के पौधों के अंकुरण और बढ़वार के लिए 20 डिग्री के आसपास का तापमान चाहिये। इसी तरह फूल निकलने के समय भी 10 से 20 डिग्री का तापमान सबसे उपयुक्त बताया गया है।

खेत की तैयारी कैसे करें

केसर की खेती के लिए सबसे पहले खेत को खरपतवार हटा कर मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। उसके बाद खेत में प्रति एकड़ 10 से 15 टन गोबर की खाद डालकर कल्टीवेटर से तिरछी जुताई करें ताकि खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाये। इसके बाद खेत में पलेवा करके छोड़ दें और जब जमीन हल्की सूख जाये तब एन.पी.के. की उचित मात्रा में डालकर रोटावेटर से जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाये। ये भी पढ़े: रिटायर्ड इंजीनियर ने नोएडा में उगाया कश्मीरी केसर, हुआ बंपर मुनाफा

उन्नत किस्में

कश्मीरी मोगरा: केसर की उन्नत किस्मों के बारे में कश्मीरी मोगरा को सबसे अच्छा माना जाता है। इसकी उच्च गुणवत्ता के कारण ही इसका बाजार में मूल्य 3 से 5 लाख रुपये प्रतिकिलो है। इस किस्म की केसरकी खेती केवल जम्मू कश्मीर में ही किश्तवाड़, पम्पोर के आसपास अधिक होती है। इसके पौधे एक फुट की ऊंचाई वाले होते हैं। इन पौधों पर बैंगनी, नीले और सफेद फूल लगते हैं। इन फूलों में दो से तीन नारंगी रंग की पतली से पंखुड़ियां होतीं है, इन्हें ही केसर कहा जाता है। माना जाता है कि एक बीघे में एक किलो केसर हो पाती है। हेक्टेयर की बात करें तो 4 किलो के आसपास केसर मिल जाती है।

अमेरिकन केसर

केसर की इस नस्ल पर विवाद भी है। इसको कुछ लोग केसर मानते हैं तो कुछ लोग इसे कुसुम का पौधा कहते हैं। इसकी केसर कश्मीरी केसर की अपेक्षा बहुत कम रेट पर बिकती है। राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों में इस अमेरिकन केसर की खेती होती है। इसकी खेती शुष्क प्रदेशों में होती है और इसके लिए कोई विशेष प्रकार की जलवायु की जरूरत नहीं होती है। इसका प्रयोग सफोला तेल बनाने में किया जाता है।

कब और कैसे करें बिजाई

कैसे करें केसर की खेती केसर की खेती के लिए बिजाई का सबसे उत्तम समय अगस्त माह का होता है। कुछ किसान भाई सितम्बर में भी इसकी बुआई कर सकते हैं। अच्छी गुणवत्ता वाली केसर पाने के लिए किसान भाइयों को समय पर ही बिजाई करनी आवश्यक होती है। इस समय केसर लगाने से फायदा यह होता है कि जब नवम्बर में अधिक सर्दी पड़ती है तब तक पौधा इतना मजबूत हो जाता है कि उस पर सर्दी का असर नहीं पड़ता है बल्कि उस समय उसके फूल अधिक अच्छा आता है। ये भी पढ़े: सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने नौकरी छोड़कर केसर का उत्पादन शुरू किया, वेतन से कई गुना ज्यादा कमा रहा मुनाफा केसर की बिजाई दो तरीके से की जा सकती है। इसको समतल खेतों में लगाया जा सकता है और यदि पानी के भराव की कोई आशंका हो तो इसको मेड़ पर लगाना चाहिये। समतल खेतों में पंक्ति की दूरी लगभग दो फुट की होनी चाहिये। जो किसान भाई इसे मेड़ पर लगाना चाहते हैं तो मेड़ों के बीच एक फुट की दूरी छोड़नी चाहिये। पौधों के बीच  दूरी भी फुट रखनी चाहिये। कश्मीरी मोगरा केसर की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 1 से दो क्विंटल के बीज की जरूरत होती है। इसका बीज लहसुन जैसा होता है। यह बीज काफी महंगा मिलता है। इसे बल्ब कहते हैं।

सिंचाई प्रबंधन

यदि वर्षा काल में केसर की बिजाई की जा रही है तो पानी की आवश्यकता होती है। इस समय किसान भाइयों को चाहिये कि वे यह देखते रहें कि वर्षाकाल में बारिश नहीं हो रही है तो बीज बोने के बाद सिंचाई अवश्य कर दें तथा 15 दिन में एक बार अवश्य सिंचाई कर दें। समय-समय पर सिंचाई तो करें लेकिन जब फूल आने वाले हों तो सिंचाई को रोक दें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

केसर की खेती में खाद व उर्वरक जुताई और बुआई से पहले ही डाली जाती है। बुआई से पहले प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन गोबर की खाद डाली जाती है। इसके अलावा जो किसान भाई उर्वरकों को प्रयोग करना चाहते हैं वे एनपीके की उचित मात्रा बुआई से पहले अंतिम जुताई के दौरान डाल सकते हैं। उसके बाद जब पौधे की सिंचाई करें तब खेत में वेस्ट डिकम्पोजर डालने से लाभ होता है।

खरपतवार प्रबंधन

केसर की खेती में दो बार निराई गुड़ाई करने की आवश्यकता होती है। किसान भाइयों को चाहिये कि बीज से अंकुर निकलने के लगभग 15 से 20 दिन के बीच एक बार निराई करके खरपतवार हटा देना चाहिये और उसके एक माह बाद फिर से निराई गुड़ाई कर देनाा चाहिये।

रोग प्रबंधन

केसर की खेती में रोगों के लगने की संभावना कम ही होती है। इसके बावजूद दो रोग अक्सर देखने को मिल जाते हैं।
  1. मकड़ी जाला: ये रोग अंकुर निकलने के बाद पहले या दूसरे महीने में लग जाता है। इससे पौधे के बढ़वार रुक जाती है जिससे उत्पादन प्रभावित हो जाता है। इसके संकेत मिलते ही आठ-दस दिन पुरानी छाछ यानी मट्ठे का छिड़काव करने से लाभ मिलता है।
  2. बीज सड़न: बुआई के बाद ही यह रोग लग जाता है। इस रोग के लगने के बाद बीज सड़ने लगता है। इस बीमारी को कोर्म सड़ांध के नाम से भी जाना जाता है। इसका संकेत मिलते ही पौधे की जड़ों पर सस्पेंशन कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करना चाहिये।

केसर की तुड़ाई कब की जानी चाहिये

केसर की तुड़ाई कब की जानी चाहिये केसर की खेती में बीजों की बुआई के लगभग चार महीने बाद ही केसर फूल देना शुरू कर देता है। इस फूल के अन्दर धागे नुमा पंखुड़ियां जब लाल या नारंगी हो जायें तब उन्हें तोड़ कर छायादार जगह में सूखने के लिए एकत्रित करें। जब सूख जाएं तब उन्हें किसी कांच के बर्तन में रख लें।

मोगरा केसर ऐसे बनायें

केसर के फूलों से निकली नारंगी पंखुड़ियों को तीन से पांच दिन सुखाया जाता है। उसके बाद इन्हें डंडे से पीट कर मोटी छन्नियों से छाना जाता है। छानने के बाद मिले केसर को पानी में डाला जाता है जो भाग पानी में तैरता है उसे हटा दिया जाता है। पानी में डूबने वाले हिस्सों को निकाल कर सुखाया जाता है। इस तरह से असली मोगरा केसर तैयार हो जाता है। जिसकी कीमत 3 लाख रुपये प्रतिकिलो से अधिक बतायी जाती है। ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों के निरंतर प्रयास से इस राज्य के गाँव में हुआ केसर का उत्पादन

लच्छा केसर भी बनाया जाता है

पानी में तैरने वाला भाग जो हटाया जाता है। उसे दुबारा पीट कर फिर पानी में डुबाया जाता है। इसमें डूबने वाले हिस्से को फिर पानी से निकाला जाता है जिसे लच्छा केसर कहते हैं। इसकी क्वालिटी पहले वाले से कम होती है।

संभावित लाभ

किसान भाइयों केसर की खेती से हमें अच्छी फसल मिलने पर काफी लाभ  प्राप्त होता है। एक फसल में केसर की खेती से प्रति हेक्टेयर 3 किलों केसर मिलती है। गुणवत्ता के आधार पर केसर की कीमत लगभग 3 लाख रुपये किलो बताई जाती है। इस तरह से प्रति हेक्टेयर 9 लाख रुपये का लाभ किसान भाइयों को मिल सकता है।
पूर्व सैनिक महेंद्र सिंह ने बंजर जमीन पर शुरू की केसर की खेती

पूर्व सैनिक महेंद्र सिंह ने बंजर जमीन पर शुरू की केसर की खेती

केसर की खेती करना न सिर्फ आर्थिक लाभ कमाना है बल्कि यह एक सामाजिक प्रेरणात्मक कार्य भी है।  पूर्व सैनिक महेंद्र सिंह ने बंजर जमीन पर केसर की खेती कर लाखो रुपया कमाए है। इस कार्य से युवा और किसान भी प्रेरित होकर रोजगार के अवसर प्राप्त कार सकते है। 

पूर्व सैनिक महेंद्र सिंह जो की ज्वाली विधानसभा के सुकनाड़ा पंचायत से सम्बन्धित है उन्होंने अपनी मेहनत और द्रढ़ संकल्प से बंजर भूमि को उपजाऊ बना दिया है। 

महेंद्र सिंह ने चार मरला खेत में केसर की खेती की जिसे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधर आया बल्कि सभी स्थानीय किसानों को भी उससे प्रेरणा मिली है। 

नगरोटा सूरियां क्षेत्र में उन्होंने कृषि को अपने ज्ञान और रुचि के आधार पर एक नयी दिशा प्रदान की है। मीडिया के द्वारा बताया गया है की मेह्नद्र सिंह ने लगभग 17 साल तक सेना में अपनी सेवाएं दी है। साथ  ही उन्होंने ये भी बताया उनकी पत्नी संतोष भी इस कार्य में अपना सहयोक प्रदान करती थी। 

दोस्त से मिली खेती की प्रेरणा 

महेंद्र सिंह पठानिया ने बताया उन्हें अपने दोस्त से इस खेती के लिए प्रेरणा मिली थी। साथ ही इसके अलावा केसर की खेती के लिए भी बीज भी उन्ही के दोस्त ने उपलब्ध कराया था। 

महेंद्र सिंह पठानिया ने केसर की खेती चार मरले भूमि में की थी इस वक्त उनकी यह खेती पैदावार भी देने लगी है , रोजाना वो केसर के फूल तोड़कर उन्ही एकत्रित करते है। 

केसर की खेती के अलावा महेंद्र सिंह पठानिया ने तीन कनाल भूमि पर द्वितीय किस्म के चावल की खेती भी की थी, जिसकी पैदावार बी काफी अच्छी रही। 

उन्होंने यह भी बताया यदि खेती के लिए पर्याप्त पानी मिलता रहे तो नगरोटा के किसान नगदी फसलों का उत्पादन कर बेहतर कमा सकते है, उन्हें छोटी मोटी नौकरियों के लिए इधर उधर नहीं भटकना पड़ेगा। 

मेहन्द्र सिंह पठानिया ने यह भी बताया नगरोटा क्षेत्र के किसानों के पास भूमि तो है लेकिन खेती करने और सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं है।  

सिंचाई सुविधा के अभाव में किसान खेती नहीं कर पाते है। सिंचाई सुविधाओं के अभाव को लेकर महेंद्र सिंह पठानिया ने सरकार से भी इस मामले में बात की है ताकि खेती से पीछे हटने वाले किसानों को अच्छी नकदी फसलों की पैदावार के लिए प्रेरित किया जा सके। 

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मेहन्द्र सिंह पठानिया द्वारा की गई कर की खेती से युवा और किसान भी काफी प्रेरित हुए है। केसर की खेती और नकदी फसल की खेती से प्रेरित होकर किसान रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकता है। 

केसर की खेती कैसे करें ?

सबसे पहला प्रश्न आता है की केसर की खेती कैसे और उसकी पैदावार के लिए कैसी जलवायु चाहिए, कितनी सिंचाई करें किस प्रकार की भूमि और मिट्टी की आवश्यकता पड़ेगी। 

1 भूमि का चयन और तैयारी 

केसर की खेती के लिए सबसे पहले भूमि का चयन करना पड़ता है, उसके बाद केसर की बुवाई के लिए भूमि को तैयार किया जाता है। 

केसर की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि की आवश्यकता रहती है इसके बाद भूमि की अच्छे से जुताई कर ले। जुताई के बाद भूमि को पाटा लगाकर अच्छे से समतल बना ले और भूमि को बुवाई के लिए तैयार कर ले। 

2 बीजो का चयन और रोपण 

भूमि को तैयार करने के बाद बीजो का चयन करें, ध्यान रहे बीज किसी रोग से ग्रस्त न हो। बुवाई करने से पहले बीजो को उपचार कर ले। 

रोपण के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजो का चयन करें और केसर की खेती का सही समय सितम्बर से अक्टूबर माह के बीच में होता है। 

3 सिंचाई 

केसर की बुवाई के बाद खेत में सिंचाई का कार्य नियमित रूप से किया जाता है।  सिंचाई का कार्य खासकर रोपण के बाद वाले महीनो में ज्यादातर किया जाता है। 

4 खाद और उर्वरक 

केसर की खेती में रासायनिक खादों का कम उपयोग किया जाता है।  केसर की खेती में ज्यादातर जैविक गोबर खाद या डीकम्पोस्ट खाद का उपयोग ज्यादातर किया जाता है। 

5 कटाई और उत्पादन 

केसर की कटाये या फूलो को सुबह के वक्त तोड़े क्योंकि उस समय केसर के पौधे खिले हुए होते है। फूलो को तोड़ने के बाद उन्हें धूप में सूखा दे। 

सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने नौकरी छोड़कर केसर का उत्पादन शुरू किया, वेतन से कई गुना ज्यादा कमा रहा मुनाफा

सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने नौकरी छोड़कर केसर का उत्पादन शुरू किया, वेतन से कई गुना ज्यादा कमा रहा मुनाफा

भारत में केसर की खेती कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में सर्वाधिक स्तर पर होती है। बाजार में इसकी कीमत काफी ज्यादा है। अब तक एक किलो केसर की मूल्य 3 लाख रुपये है। केसर का नाम कान में पड़ते ही दिमाग में सर्व प्रथम कश्मीर का नाम आता है। लोगों का यह मानना है, कि भारत के अंदर केवल कश्मीर जैसे सर्द मौसम वाले क्षेत्रों में ही केसर का उत्पादन किया जाता है। परंतु, यह बातें अब काफी पुरानी हो चुकी हैं। फिलहाल, आधुनिक तकनीक के माध्यम से लोग गर्म राज्यों में भी केसर का उत्पादन कर रहे हैं। इससे किसान भाइयों की अच्छी-खासी आमदनी भी हो रही है। आज हम एक ऐसे ही किसान के विषय में चर्चा करने जा रहे हैं, जिन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर केसर की खेती चालू की है। किसान ने इसमें काफी सफलता भी अर्जित की है। 

शैलेश मोदक कहाँ के रहने वाले हैं

द इकोनॉमिक टाइम्स हिंदी की खबरों के अनुसार, पुणे जनपद निवासी शैलेश मोदक एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। उन्होंने 13 वर्ष तक विभिन्न कंपनियों में अच्छे-खासे वेतन पर नौकरी की है। अचानक से उनके मन में केसर की खेती करने का विचार आया। विचार आने के बाद शैलेश मोदक ने नौकरी छोड़कर कंटेनर के अंदर केसर की उत्पादन आरंभ कर दिया। इससे उनको लाखों रुपये की आमदनी भी हो रही है। शैलेश ने कहा है, कि आहिस्ते-आहिस्ते वह कंटेनरों की संख्या में बढ़ोत्तरी करेंगे।

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शैलेश मोदक किस तरह से केसर की खेती करते हैं

शैलेश मोदक शिपिंग कंटेनर के भीतर केसर का उत्पादन करने के लिए तापमान को नियंत्रण में रखते हैं। शैलेश मोदक का कहना है, कि वह कंटेनर के अंदर हाइड्रोपोनिक तकनीक से बाकी फसलों का भी उत्पादन कर रहे हैं। विशेष कर वह हाइड्रोपोनिक तकनीक से महंगी सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं, जिसकी विदेशों में काफी ज्यादा मांग है। वर्तमान में शैलेश मोदक अन्य किसानों को भी केसर का उत्पादन करने के लिए बारीकियों को सीखा रहे हैं। 

भारत में केसर की अधिक मांग को देखते हुए शैलेश केसर की खेती का रकबा बढ़ाएंगे

बतादें, कि भारत में केसर का सर्वाधिक उत्पादन कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में किया जाता है। बाजार में इसकी कीमत काफी ज्यादा होती है। अभी एक किलो केसर का मूल्य 3 लाख रुपये है। शैलेश अभी कंटेनर के भीतर 160 स्क्वायर फीट में केसर का उत्पादन कर रहे हैं। इससे वह करीब 5 से 6 किलो तक केसर की पैदावार अर्जित कर रहे हैं। शैलेश मोदक का कहना है, कि वह 6 साल से केसर की खेती करते आ रहे हैं। इससे पूर्व वह मधुमक्खी पालन किया करते थे। भारत में 4 टन ही केसर की पैदावार होती है, जबकि मांग लगभग 100 टन की है। ऐसे में मांग की आपूर्ति करने के लिए विदेशों से केसर का आयात किया जाता है। विशेष कर ईरान, अफगानिस्तान और नीदरलैंड से सर्वाधिक केसर का आयात किया जाता है। शैलेश मोदक की योजना है, कि आगामी वर्षों में वह 320 वर्ग फीट में केसर का उत्पादन किया करेंगे।

रिटायर्ड इंजीनियर ने नोएडा में उगाया कश्मीरी केसर, हुआ बंपर मुनाफा

रिटायर्ड इंजीनियर ने नोएडा में उगाया कश्मीरी केसर, हुआ बंपर मुनाफा

भारत में केसर का मसाले और दवाई के रूप में प्रयोग किया जाता है। चटक रंग के कारण इसका प्रयोग अनेक भारतीय व्यंजनों में भी किया जाता है। जिसके कारण पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि इसकी मांग घरेलू बाजार में तेजी से बढ़ी है। केसर एक ऐसी फसल है जिसे उगाने के लिए खास तरह की जलवायु की जरूरत होती है। ऐसे में इसका उत्पादन मुख्य तौर पर कश्मीर में किया जाता है। कश्मीर के अलावा अन्य प्रदेशों की जलवायु को इसके उत्पादन के लिए सही नहीं माना जाता है। इसलिए अन्य प्रदेशों के किसान अपने यहां इसके उत्पादन के लिए प्रयास नहीं करते हैं। लेकिन इसके विपरीत नोएडा में रहने वाले इंजीनियर रमेश गेरा ने उत्तर प्रदेश की भूमि पर केसर की खेती करके कमाल कर दिया है। केसर के बारे में कहा जाता है कि इसकी खेती सिर्फ ठंडी जलवायु वाली जगह में ही की जाती है। गर्म और उष्ण जलवायु में इसकी खेती संभव नहीं है। इसकी खेती के लिए विशेष प्रकार की मिट्टी की जरूरत होती है। ऐसे में इंजीनियर रमेश गेरा के लिए नोएडा में केसर की खेती करना बेहद चुनौतीपूर्ण था। रमेश गेरा ने बताया कि इसके लिए उन्होंने कश्मीर जैसी जलवायु को विकसित किया। साथ ही कश्मीर से मिट्टी मंगवाई और घर में खेती शुरू की। जिसमें उन्हें सफलता प्राप्त हुई। फिलहाल रमेश गेरा नोएडा में केसर की खेती करके हर साल लाखों रुपये कमा रहे हैं।

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रमेश गेरा ने बताया कि केसर की खेती उन्होंने एडवांस फार्मिंग की मदद से शुरू की है। वह दक्षिण कोरिया से एडवांस फार्मिंग की तकनीक सीखकर भारत वापस लौटे हैं। साल 2017 के बाद वो रिटायर्ड हो गए थे, जिसके बाद उन्होंने केसर की खेती करना शुरू कर दी है। शुरुआती दो सालों में उन्हें इस खेती में सफलता हाथ नहीं लगी थी। जिसके बाद वो कश्मीर पहुंचे और उन्होंने अपने स्तर पर रिसर्च की और यह जानने की कोशिश की कि केसर की खेती कैसे करते हैं। उसके बाद वापस लौटकर उन्होंने नोएडा में केसर उगाना शुरू किया। इस बार वो उत्तर प्रदेश की जमीन पर केसर उगाने में कामयाब हुए और वर्तमान में वो केसर से अच्छी खासी उपज प्राप्त कर रहे हैं। रमेश गेरा ने अपने बारे में बताया है कि वो एक किसान परिवार से आते हैं जो हरियाणा के हिसार में रहता है। उनके मन में हमेशा से किसानों के लिए कुछ नया करने की इच्छा थी, इसलिए वो समय-समय पर खेती बाड़ी के नए प्रयोग करते रहते थे। वह वर्तमान में किसानों को एडवांस फार्मिंग की तकनीक सिखा रहे हैं। साथ ही हाइड्रोफोनिक, ऑर्गेनिक और सॉइल लेस मल्टीलेवल खेती कैसे करते हैं इसके लिए भी किसानों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। बड़ी संख्या में आस पास के किसान उन्हें खेती किसानी का प्रशिक्षण लेने पहुंच रहे हैं। इन दिनों रमेश गेरा केसर के अलावा विभिन्न प्रकार की सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं, जिनसे उन्हें भरपूर मुनाफा प्राप्त हो रहा है। जेल के कैदियों की सहायता करने के लिए वो इन दिनों उन्हें भी खेती किसानी की उन्नत तकनीकें सिखा रहे हैं।